मध्य प्रदेश में एक जनजाति है बैगा. ये राज्य के डिंडोरी ज़िले में पाई जाती है और इसकी गिनती कमजोर आदिवासी समूह में होती है. पोंडी गांव में बसी इस जनजाति की बस यही एक ख़ासियत नहीं है. ये पूरी दुनिया में अपने अनोखे जंगल बचाओ अभियान और ख़ुद के आत्मनिर्भर होने के लिए भी जानी जाती है, जिसकी शुरुआत आज से कई साल पहले हुई थी. चलिए जानते हैं इस ख़ास जनजाति और इसके अनोखे अभियान के बारे में… आत्मनिर्भर बनी इस जनजाति के जंगल बचाओ अभियान की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. इसे 4 क्लास ड्राप आउट एक महिला उजियारो बाई केवटिया ने शुरू की थी. उन्होंने एक NGO के साथ मिलकर इसकी शुरुआत की थी जब वो यहां पर पानी को संरक्षित करने के इरादे से यहां आई थी. मगर उनके इस मकसद में रुकावट आईं जिसका मुख्य कारण जंगल की कटाई या फिर धीरे-धीरे उनका कम होना था. और पढ़े..
विशेष रूप से दलित जातियों में प्रचलित सती बिहुला की लोकगाथा अब अपनी जातीय सीमाओं से परे पूरे बिहार में पसंद की जाती है। यह कहानी सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं के समर्पण और महत्त्व को रेखांकित करती है। बिहार के अतिरिक्त बिहुला की कथा का उत्तर प्रदेश तथा बंगाल में भी प्रचार पाया जाता है। संक्षेप में इसकी कथा निम्नांकित है- "चन्दू साहू नामक एक प्रसिद्ध सौदागर था। इसके लड़के का नाम बाला लखन्दर था। यह रूप-यौवन से सम्पन्न तथा सुन्दर युवक था। अवस्था प्राप्त होने पर इसका विवाह सम्बन्ध 'बिहुला' नामक एक परम सुन्दरी कन्या से किया गया। चन्दू साहू के 6 लड़के विवाह के अवसर पर कोहबर में साँप के काटने से मर चुके थे। अत: बाला लखन्दर के विवाह के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि पूर्व दुर्घटना की पुनरावृत्ति न होने पाये। इस विचार से ऐसा मकान बनाने का निश्चय हुआ, जिसमें कहीं भी छिद्र न हो। [३] विषहरी नामक ब्राह्मण , जो चन्दू सौदागर से द्वेष रखता था, बड़ी ही दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति था। उसने मकान बनाने वाले क...
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